Tuesday 3 April 2012

'' निराशा ''


डूबते सूरज सी निराशा
मुरझाते फूलों सी निराशा

है सबके जीवन में ये ठहरी
प्रातः रात , सांझ दोपहरी

दिल में लेकर रुदन की भाषा
लाये खुशियों की अभिलाषा

कोई इसको समझे आशा
तो कोई जाने इसे तमाशा

जब भी फैले इसका आँचल
तन्हाई सी तब लगती हर पल

अन्धकार सी लगे निराशा
अश्रुओं से सजे निराशा ........

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